Zinda Rahain To Kiya Hai Jo Mar Jaye Hum | ज़िंदा रहें तो क्या है, मर जाएँ हम तो क्या
Zinda Rahain To Kiya Hai Jo Mar Jaye Hum
ज़िंदगी और खामोशी: एक चिंतन
“ज़िंदा रहें तो क्या है, मर जाएँ हम तो क्या।”
ये पंक्तियाँ हमें ज़िंदगी की अस्थिरता और हमारे अस्तित्व की नायाब लेकिन क्षणभंगुर प्रकृति की याद दिलाती हैं। हम सब हर रोज़ जीते हैं, काम करते हैं, हँसते हैं, दुख पाते हैं… और फिर भी यह सवाल हमारे मन में उठता है: क्या हमारे होने या न होने से कोई फर्क पड़ता है?
खामोशी में गुज़रता समय
“दुनिया से खामोशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या।”
हमारे जीवन के पल अक्सर इतने जल्दी बीत जाते हैं कि न जाने कितने लोग हमारी मौजूदगी या गैर-मौजूदगी पर ध्यान ही नहीं देते। यह शेर हमें याद दिलाता है कि दुनिया में हमारी महत्ता सीमित होती है; फिर भी, यह सीमित समय भी हमारे लिए, हमारे अनुभवों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है।
हमारी पहचान और महत्व
“हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने।”
कितनी बार हमने सोचा है कि हमारे काम, हमारी कोशिशें, हमारी पहचान दूसरों के लिए कितनी मायने रखती है? यह पंक्ति यही सवाल उठाती है। हम जैसे भी हैं, चाहे पूरी दुनिया हमें याद करे या न करे, हमारी ज़िंदगी की वास्तविकता और महत्व तो केवल हमारे अनुभवों में ही है।
मृत्यु और इंतजार
“अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ।”
मृत्यु का विचार अक्सर भय या अज्ञात की भावना पैदा करता है। लेकिन यहाँ यह प्रश्न भी उठता है कि मृत्यु के बाद, क्या कोई हमारे लिए इंतजार कर रहा है? क्या हमारे जाने से कोई खालीपन महसूस करेगा? इस शेर में एक उदासी, परन्तु स्वीकृति भी झलकती है।
दिल की ख़लिश और दर्द
“दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र।”
जीवन के अनुभव, दुःख, और दिल की पीड़ा हमारे साथ हमेशा रहती हैं। ये हमें मजबूत भी बनाते हैं, संवेदनशील भी। हर दर्द का अपना महत्व है और यह हमें हमारी मानवता की याद दिलाता है।
निष्कर्ष
इस कविता की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि यह हमें जीवन और मृत्यु दोनों के प्रति जागरूक करती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारी हँसी, हमारा दुःख, हमारी पहचान — सब अस्थायी हैं। और फिर भी, इन अस्थायियों में ही जीवन का सार छिपा है।
तो, ज़िंदगी में चाहे कितनी भी खामोशी हो, चाहे हमारा अस्तित्व कितना भी क्षणिक लगे, हर अनुभव, हर भावना, हर ख़्वाब हमारे जीवन की कहानी बनाता है।
हम ज़िंदा रहें या न रहें, हमारी कहानी हमेशा हमारे भीतर रह जाती है।
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