Kabhi Ghunchaa Kabhi Sholaa Kabhi Shabanam Ki Tarah
Kabhi Ghunchaa Kabhi Sholaa Kabhi Shabanam Ki Tarah
कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह – राणा सहरी की भावपूर्ण ग़ज़ल
अगर आप शायरी और ग़ज़ल के प्रेमी हैं, तो राणा सहरी की यह ग़ज़ल आपकी रूह को छू जाएगी। उनकी यह ग़ज़ल इंसान के बदलते भाव, प्यार, जुदाई और जीवन के अनुभवों को बेहद सुंदर ढंग से बयान करती है।
ग़ज़ल के मुख्य अश’आर और उनके अर्थ
1. कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह
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गुंचा = कली, नाज़ुक शुरुआत
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शबनम = ओस, कोमलता
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अर्थ: इंसान और रिश्ते कभी नाज़ुक, कभी प्रबल और कभी कोमल होते हैं। लोग मिलते-जुलते हैं जैसे बदलते मौसम।
2. मेरे महबूब मेरे प्यार को इल्ज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है, मुहर्रम की तरह
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हिज्र = जुदाई
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अर्थ: प्रियजन अपने प्यार पर आरोप न लगाएँ। मेरी जुदाई में भी भावना और पवित्रता का सम्मान है।
3. मैंने ख़ुशबू की तरह तुझको किया है महसूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को, शबनम की तरह
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अर्थ: मैंने अपने प्यार की कोमलता से उसे महसूस कराया। यादें ताजगी और नर्मी की तरह हैं।
4. कैसे हमदर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह
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नश्तर = चोट पहुँचाने वाला छोटा चाकू
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अर्थ: कभी-कभी जो चोटें आप पहुँचाते हैं, वे भी उपचार या सीख की तरह होती हैं।
और अश’आर:
हम भी रोये तो बहुत अपने मुकद्दर पे लेकिन
साया-ए-शब में बरसती हुई शबनम की तरह
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अर्थ: दुख में भी शांति और नर्मी बनाए रखना, जैसे रात की ओस।
अब तो इस दौर में धोखे के सिवा कुछ भी नहीं
लोग नश्तर भी लगाते हैं तो मरहम की तरह
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अर्थ: भले ही लोग चोट पहुँचाएँ, कभी-कभी वे सीख और सुधार की तरह भी होते हैं।
राणा सहरी की विशेषता
राणा सहरी की शायरी की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि वे भावनाओं को चित्रात्मक रूप में व्यक्त करते हैं। उनकी ग़ज़ल पढ़ते समय हर शब्द एक तस्वीर की तरह उभरता है – कभी नाज़ुक, कभी तीव्र और कभी ठंडी ओस की तरह कोमल।
इस ग़ज़ल में आप प्यार, जुदाई, जीवन के अनुभव और मानव संबंधों की नाज़ुकता का आनंद ले सकते हैं।
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