Kachhi Deewar Hoon Thokar Na Lagana - lyrics
Kachhi Deewar Hoon Thokar Na Lagana
कच्ची दीवार: नाज़ुक दिल की कविता
आज हम एक बेहद खूबसूरत और संवेदनशील कविता “कच्ची दीवार” के बारे में बात करेंगे। यह कविता प्रेम, नाज़ुकता और भावनाओं की संवेदनशीलता को खूबसूरती से दर्शाती है। इसे पढ़ते समय हमें एहसास होता है कि कभी-कभी इंसान भी बिल्कुल कच्ची दीवार की तरह नाज़ुक और टूटने वाला महसूस करता है।
कच्ची दीवार हूँ, ठोकर मत लगाना मुझे
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे।
कविता की यह पंक्ति बार-बार दोहराई गई है। इसका अर्थ यह है कि वक्ता अपनी भावनाओं और दिल की नाज़ुकता को व्यक्त कर रहा है। जैसे एक कच्ची दीवार आसानी से टूट जाती है, वैसे ही वक्ता भी संवेदनशील है। वह दूसरों से अनुरोध कर रहा है कि उसे चोट न पहुँचाएँ।
अपनी नज़रों में बसा कर,
मत गिराना मुझे।
यह पंक्ति रिश्तों और विश्वास की नाज़ुकता को दर्शाती है। वक्ता चाहता है कि उसे अपनाया जाए, लेकिन भावनात्मक रूप से चोट न पहुँचाई जाए।
तुमको आँखों में तसव्वुर की तरह रखता हूँ
तुमको आँखों में तसव्वुर की तरह रखता हूँ
दिल में धड़कन की तरह,
तुम भी बसाना मुझे
यहाँ वक्ता अपने प्रिय व्यक्ति को अपने आँखों और दिल में संजोने की बात करता है। आँखों में तसव्वुर रखने का मतलब है कि वह उसे हमेशा याद और महसूस करना चाहता है। दिल में बसाने का मतलब है कि वह उसके लिए हमेशा जगह बनाए रखना चाहता है, जैसे धड़कन हमेशा दिल में रहती है।
बात करने में जो मुश्किल हो तुमको महफ़िल में
बात करने में जो मुश्किल हो तुमको महफ़िल में,
मैं समझ जाऊँगा,
नज़रों से बताना मुझे।
यह पंक्ति यह दर्शाती है कि वक्ता संवेदनशील और समझदार है। अगर किसी को भीड़ में या समाज में खुलकर भावनाएँ व्यक्त करने में कठिनाई हो, तो वह नज़रों और संकेतों से समझने की क्षमता रखता है।
वादा उतना ही करो, जितना निभा सकते हो
वादा उतना ही करो, जितना निभा सकते हो
ख़्वाब पूरे जो न हों,
वो मत दिखाना मुझे।
यहां वक्ता स्पष्ट रूप से कहता है कि वादे वही करो जो निभा सको। अधूरे या झूठे ख्वाब दिखाकर किसी को भ्रमित करना उचित नहीं। यह भी उसकी संवेदनशीलता और आत्म-सम्मान की पहचान है।
अपने रिश्ते की नज़ाकत का बरम रख लेना
अपने रिश्ते की नज़ाकत का बरम रख लेना
मैं तो आशिक हूँ,
दीवाना न बनाना मुझे।
यह पंक्ति रिश्तों की नाज़ुकता और संवेदनशीलता को व्यक्त करती है। वक्ता कह रहा है कि वह प्यार करता है, लेकिन अतिउत्साह या दीवानगी में उसे चोट न पहुँचाई जाए।
गजल का सार
“कच्ची दीवार” एक भावनात्मक रूपक है। यह कविता हमें यह सिखाती है कि हर इंसान की भावनाएँ नाज़ुक होती हैं। प्रेम और संबंधों में हमें वादा निभाने, संवेदनशील होने और समझदारी दिखाने की आवश्यकता होती है।
कविता का सबसे खूबसूरत पहलू यह है कि यह सरल शब्दों में गहरी भावनाओं को व्यक्त करती है। हर पंक्ति में स्नेह, नज़ाकत और आत्म-संरक्षण की झलक है।
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे।
अपनी नज़रों में बसा कर,
मत गिराना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ…
तुमको आँखों में तसव्वुर की तरह रखता हूँ
तुमको आँखों में तसव्वुर की तरह रखता हूँ
दिल में धड़कन की तरह,
तुम भी बसाना मुझे
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे
कच्ची दीवार हूँ…
बात करने में जो मुश्किल हो तुमको महफ़िल में,
बात करने में जो मुश्किल हो तुमको महफ़िल में,
मैं समझ जाऊँगा,
नज़रों से बताना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ…
वादा उतना ही करो, जितना निभा सकते हो
वादा उतना ही करो, जितना निभा सकते हो
ख़्वाब पूरे जो न हों,
वो मत दिखाना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ…अपने रिश्ते की नज़ाकत का बरम रख लेना,
अपने रिश्ते की नज़ाकत का बरम रख लेना।
मैं तो आशिक हूँ,
दीवाना न बनाना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे।
अपनी नज़रों में बसा कर,
मत गिराना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ,
ठोकर मत लगाना मुझे।
कच्ची दीवार हूँ…
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