हर शेर में एक तूफ़ान: ‘मैं नशे में हूँ’ की ग़ज़ल
Main Nashe Mein Hoon मैं नशे में हूँ | manjari ghazal
नशे में बेख़ुदी: एक ग़ज़ल का भाव और मतलब
कभी-कभी शायरी हमें ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहां हम अपने इमोशन्स के सबसे गहरे पहलुओं को महसूस करते हैं। हाल ही में पढ़ी गई एक ग़ज़ल ने मुझे गहरे भावों में डुबो दिया। यह ग़ज़ल नशे में खो जाने, बेख़ुदी और दोस्तों तथा प्यार की जटिलताओं को बेहद खूबसूरती से बयान करती है।
ग़ज़ल के कुछ अंश इस प्रकार हैं:
ग़ज़ल का भावार्थ
इस ग़ज़ल में बोलने वाला खुद को नशे में, बेख़ुद और अस्थिर बताता है। हर शेर में “मैं नशे में हूँ” का दोहराव उसके मन की अस्थिरता और भावनाओं की तीव्रता को दर्शाता है।
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पहला शेर: अब प्यार और दोस्ती की बातों का उसे कोई असर नहीं।
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दूसरा शेर: वह वफ़ा का यकीन तो दिला रहा है, लेकिन भरोसा करने लायक नहीं है।
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तीसरा शेर: गिरने और खो जाने की स्थिति में भी दोस्तों से बस हल्की मदद की उम्मीद है।
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चौथा शेर: अपने दोस्तों से कहता है कि आज उसे भटकने दो और वे अपने काम में लगे रहें।
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पांचवा शेर: बेख़ुदी हद पार कर रही है, इसलिए ज़्यादा प्यार उसे भारी लग सकता है।
ग़ज़ल की खूबसूरती
यह ग़ज़ल न केवल नशे की बेख़ुदी को बयान करती है, बल्कि यह इंसान की कमजोरियों और रिश्तों की जटिलताओं को भी उजागर करती है। इसे पढ़ते समय ऐसा लगता है कि हर शेर में भावनाओं का एक तूफ़ान है, और "मैं नशे में हूँ" हर बार उस तूफ़ान की तीव्रता को दोहराता है।
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