Zinda Rahain To Kiya Hai Jo Mar Jaye Hum - ज़िंदा रहें तो क्या है, जो मर जाएँ हम तो क्या
Zinda Rahain To Kiya Hai Jo Mar Jaye Hum
ज़िंदा रहें तो क्या — जीवन, अकेलेपन और अस्तित्व का दर्द
कुछ कविताएँ सिर्फ़ शब्द नहीं होतीं, वे किसी थके हुए दिल की धीमी सिसकी, किसी बूढ़े शाम की ख़ामोशी और किसी जीवन-यात्री की टूटी हुई साँस जैसी लगती हैं।
यह रचना भी ऐसा ही एहसास देती है—जहाँ जीना और मर जाना दोनों सवाल नहीं, बल्कि एक-सी थकान से भरी स्थितियाँ बन जाते हैं।
यह कविता जीवन के अस्तित्व, अकेलेपन, और अपूर्ण इच्छाओं की उन परतों को उजागर करती है जिन्हें हम अक्सर दिल में दबाकर चलते रहते हैं।
ख़ामोशी में डूबा हुआ जीवन
ज़िंदगी और मौत का फ़र्क कभी-कभी इतना छोटा हो जाता है कि दोनों का अर्थ एक-सा लगने लगता है।
जब इंसान दुनिया के शोर से नहीं, बल्कि अपनी ही ख़ामोशी से गुज़रता है,
तो जीना भी एक आदत बन जाता है—न कोई गर्व, न कोई मतलब।
यहाँ कवि जैसे कह रहा हो:
“अगर जीने में ही कोई चमक नहीं, तो मर जाने से क्या बदल जाएगा?”
हस्ती की हक़ीक़त—हम सब बस एक ख़्वाब
ज़माने के सामने हमारी पहचान अक्सर रेत की तरह बिखर जाती है।
हम जो समझते हैं कि ‘हम’ हैं,
वह वक़्त की नज़र में बस एक छोटा-सा सपना है।
कवि कहता है—अगर हम बिखर भी जाएँ,
तो भी दुनिया का कुछ नहीं बिगड़ता।
क्योंकि जिस दुनिया में हम एक क्षणिक छाया हैं,
उसमें हमारी गैर-मौजूदगी भी लंबे समय तक महसूस नहीं होती।
इंतज़ार का ख़त्म हो जाना—सबसे बड़ा दर्द
किसी समय, शायद कोई हमारा इंतज़ार करता था…
लेकिन अब वह भी नहीं।
जब कोई घर वापस आने की वजह नहीं बचती,
तो शाम और ज़िंदगी दोनों ही बोझ लगने लगते हैं।
यहाँ "शाम" सिर्फ़ समय नहीं,
बल्कि जीवन की ढलान है—
एक ऐसा पड़ाव जहाँ घर लौटना भी अर्थहीन लगता है।
दर्द—जो उम्रभर साथ चलता है
दिल की चुभन, अधूरे ख़्वाब, छूटे हुए रिश्ते—
ये सब जीवन के सफ़र में ऐसे साथी बन जाते हैं
जो कभी साथ नहीं छोड़ते।
दुख का दरिया पार करना शायद आसान हो,
लेकिन उसके बाद की ख़लिश से छुटकारा पाना नामुमकिन।
कवि स्वीकार करता है कि दर्द मिटता नहीं—
वह बस रूप बदलकर आत्मा में रहने लगता है।
अंत में…
यह रचना जीवन की कड़वी सच्चाइयों को बहुत शांत स्वर में कहती है,
लेकिन हर पंक्ति भीतर गहरे उतरती है।
यह हमें याद दिलाती है कि—
-
जीवन छोटा है
-
अस्तित्व अस्थायी है
-
और दर्द स्थायी
परंतु इन सबके बीच भी हम चलते रहते हैं,
क्योंकि शायद यही चलना ही जीवन का अंतिम सत्य है।
ज़िंदा रहें तो क्या है, जो मर जाएँ हम तो क्या
दुनिया से खामुशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने
एक ख़्वाब हैं जहाँ में बिखर जाएँ हम तो क्या
अब कौन इंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है, लौट के घर जाएँ हम तो क्या
दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र
दरिया-ए-ग़म के पार उतर जाएँ हम तो क्या
zinda rahen to kya hai jo mar jaen ham to kya
duniya se khaamushee se guzar jaen ham to kya
hastee hee apanee kya hai zamaane ke saamane
ik khvaab hain jahaan mein bikhar jaen ham to kya
ab kaun muntazir hai hamaare lie vahaan
shaam aa gaee hai laut ke ghar jaen ham to kya
dil kee khalish to saath rahegee tamaam umr
dariya-e-gam ke paar utar jaen ham to kya
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